बुधवार, 18 मई 2011

किसानों पर राजनीतिक खेल

हमारे देश में राजनीतिक पार्टियां किसानों को अधिकार दिलाने के नाम पर तरह-तरह के खेल खेलती हैं । लेकिन कोई भी पार्टी किसानों के अधिकारों को दिलाने के लिए आगे नहीं आती है । कांग्रेस औऱ बीजेपी से लेकर सभी पार्टियां वोट के लिए एक दूसरे पर कीचढ़ उछालती हैं । औऱ मुख्य मुद्दे से ध्यान हटवाकर अपना काम साधती हैं। ऐसा ही खेल हो रहा है ग्रेटर नोयडा के भट्टा परसौल गांव में जहां उत्तर प्रदेश सरकार ने किसानों की जमीन को ब्रिटिश कानून भूमि अधिग्रहण १८९४ के तहत प्रदेश के विकास के नाम पर कौड़ियों के भाव हथिया लिया और फिर ऊंचे दामों पर बिल्डरों को बेच दिया । ऐसी हालत में बेबस किसानों ने जब विरोध किया तो उन पर मायावती की सरकार ने गोलियां चलाई । इस गोलीबारी में तीन किसानों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा और कई गंभीर रुप से घायल किसान अस्पताल में भर्ती हैं । राजनीतिक खेल का ऐसा सुनहरा अवसर देख कांग्रेस और बीजेपी के साथ ही सभी पार्टियां मैदान में कुद पड़ी । जहां बीजेपी ने गिरफ्तारी का नाटक किया। वहीं राहुल गांधी ने किसानों के हित के लिये गिरफ्तारी दी । औऱ मायावती को किसानों का अपराधी साबित करने के लिये ७२ किसानों की मौतों और महिलाओं से बलात्कार का शगूफा छोड़ दिया । जिससे उत्तर प्रदेश में २०१२ में होने वाले चुनाव के दौरान किसानों का फायदा उठाया जा सके । लेकिन उन्हें शर्मिंदगी तब उठानी पड़ी जब किसानों ने मौतों और बलात्कार से इनकार कर दिया । सबसे बड़ा सवाल ये है कि अगर कांग्रेस और बीजेपी किसानों की इतनी ही हितैसी है तो उसने ब्रिटिश हुकूमत के वर्ष १८९४ में बनाये गये किसान विरोधी कानून ‘‘भूमि अधिग्रहण अधिनियम,१८९४ को आजादी मिलने के बाद क्यों नहीं खत्म किया। हैरानी की बात ये है कि भारत की ग्रामीण व्यवस्था को खस्ताहाल करने के घटिया उद्देश्य से बनाये गये, इस भूमि अधिग्रहण अधिनियम,1894 में आजादी के बाद कुछ संशोधन भी किये गये , लेकिन किसानों की भूमि के मुआवजे के निर्धारण की प्रक्रिया वही बनी रही। औऱ इस काले कानून की बदौलत हर सरकारें किसानों को बरबाद करती रही और उन्हें मिटाती रही, और ये सिलसिला आज भी जारी है ।

रविवार, 15 मई 2011

राज्यपाल या केंद्रपाल ?

देश की आजादी से लेकर आज तक राज्यपाल के अधिकारों को लेकर सवाल उठते रहे हैं । सबसे बड़ा सवाल ये है कि राज्यपाल राज्य का प्रमुख है या केंद्र का ऐजेंट है ? ज्यादातर मामलों में देखा गया है कि राज्यपाल केंद्र सरकार के इशारों पर काम करता है । ताजा मामला कर्नाटक का है जहां के राज्यपाल हंसराज भारद्वाज ने केंद्र सरकार को भेजी अपनी रिपोर्ट में राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश की है । राज्यपाल का तर्क है कि येदियुरप्पा सरकार ने सदन में स्पीकर की शक्तियों का दुरुपयोग किया है । साथ ही शक्ति परीक्षण के दौरान भी संवैधानिक नियमों का दुरुपयोग किया है। राज्यपाल ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि इस समय राज्य में राष्ट्रपति शासन ही सबसे अच्छी व्यवस्था होगी । वहीं येदियुरप्पा का कहना है कि राज्यपाल हंसराज भारद्वाज विपक्ष के इशारे पर राज्य सरकार को अस्थिर करना चाहते हैं । येदियुरप्पा ने चेतावनी दी है कि अगर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया गया तो इसके गंभीर परिणाम होंगे । उऩका दावा है कि उऩके साथ २२४ विधायकों में १२० का समर्थन प्राप्त है । अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि अगर येदियुरप्पा बहुमत का दावा कर रहे हैं तो राज्यपाल ने उनके दावे को परखा क्यों नहीं । क्या राज्यपाल हंसराज भारद्वाज येदियुरप्पा सरकार बर्खास्त करने की जल्दी में हैं ? अगर ऐसा हैं तो इसका मतलब है कि जिन नियमों के उल्लंघन का आरोप येदियुरप्पा पर रहे हैं । उन्हीं नियमों का तो वो भी उल्लंघन कर रहे हैं ? फिर किस अधिकार से वो खुद को सही और येदियुरप्पा की सरकार को गलत ठहरा रहे हैं । अगर उन्हें लगता है कि येदियुरप्पा सरकार कोई गलत काम कर रही है तो वो उसका जवाब मांगें । अगर येदियुरप्पा राज्यपाल को जवाब से संतुष्ट नहीं कर पाते हैं तो राज्यपाल चाहें तो वो येदियुरप्पा को चेतावनी दे सकते हैं ।अगर फिर भी येदियुरप्पा गलत कदम उठाते हैं तो वो येदियुरप्पा के खिलाफ सख्त कदम उठा सकते हैं । लेकिन अक्टूबर २०१० से लेकर आज तक ऐसा लग रहा है कि राज्यपाल किसी के इशारे पर हर हाल में येदियुरप्पा की सरकार को बरखास्त करना चाहते हैं । दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी के ग्यारह विधायकों और चार निर्दलीय विधायकों की सदस्यता बहाल कर दी है । जिनमें से बीजेपी के दस विधायकों ने येदियुरप्पा सरकार का समर्थन कर दिया है , औऱ इस बात की सूचना उन्होंने राज्यपाल को भी देनी चाही, लेकिन राज्यपाल हंसराज भारद्वाज ने मिलने से ही इऩकार कर दिया । और विपक्ष की मांग पर आऩन-फानन में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश केंद्र सरकार से कर दी। गौरतलब है कि इससे पहले अक्टूबर २०१० में भी राज्यपाल हंसराज भारद्वाज ने राज्य में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश की थी । ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि राज्यपाल की भूमिका क्या हो ?